" कयाद्रा ( कसारदा ) का युद्ध 1178 मुहम्मद गौरी की भारत भूमि पर प्रथम पराजय "
" पाटन की राजमाता नायिका देवी व बाल मुलराज सोलंकी के नेतृत्व में यह युद्ध लड़ा गया था "
वर्तमान में कसदा #सिरोही राज्य में स्थित पश्चिम रेलवे के कोवरली स्टेशन से लगभग 4 मील उत्तर में स्थित आधुनिक कायद्रा " नामक गांव है भारतीय सीमा पर मुल्तान और उच्छ पर अधिकार कर लेने से मुहम्मद गौरी का साहस बढा और अब वह 1178 ई . में मुल्तान और उच्छ होता हुआ गुजरात की राजधानी अन्हिलवाडा पाटन ( नहरवाला ) की और बढा ।
पृथ्वीराज महाकाव्य के अनुसार इस अभियान के समय पृथ्वीराज चौहन के हस्तक्षेप के अनुमान से मुहम्मद गौरी उसे तटस्थ रखने के लिए उसके पास अपना एक दूत भेजा था । यदपि पृथ्वीराज चौहन तृतीय चालुक्य शासक की मदद करना चाहता थे किन्तु अपने मंत्री कदम्बवास के हस्तक्षेप के कारण वह ऐसा नही कर सके मुस्लिम सेना किराडू होते हुए आगे बड़ी और नोडल ' पर अधिकार कर लिया ।
किराडू से मिले कार्तिक सुद्री 13 गुरुवार संवत 1235 26 अक्टूम्बर 1178 ई . के शिलालेख में वर्णित है कि गुजरात के शासक सम्राट भीमदेव दि के शासन संचालन में तेजपाल की पत्नी मानस ने तुरुषको द्वारा नष्ट की गयी मूर्ति के स्थान पर नवीन प्रतिमा स्थापित की थी सभी लेखकों ने तत्कालीन गुजरात के शासक का नाम भीमदेव लिखा है किन्तु गैर - मुस्लिम स्त्रोतों से स्पष्ट होता है कि उस समय मूलराज द्वितीय गुजरात का शासक थे
बाल मूलराज जी ने संवत 1235 तक शासन किया था और उसी वर्ष सम्राट भीमदेव दितीय सिंहासनारूढ़ हुऐ । 1178 ई . में मुहम्मद गौरी का आक्रमण गुजरात के चालुक्य राज्य पर हुआ जो उस समय एक धनी राज्य था और जहां से भारत के भीतरी भाग में प्रवेश करने का सरल मार्ग था पश्चिम राजपूत राज्यों पर उसका वास्तविक अधिकार था और इस प्रकार गुजरात राज्य गजनियो ( पंजाब का गजनी राज्य ) के पार्श्व से निकलकर हिंदुस्तान में प्रवेश करने के उसके मार्ग में बाधक थे
गुजरात में उस समय बाल मूलराज द्वितीय शासन कर रहे थे और अन्हिलवाडा पाटन उनकी राजधानी थी मुहम्मद गौरी मुल्तान , उच्छ और पश्चिमी राजपुताना में होकर जब आबू पर्वत की तलहटी के पास पंहुचा तो वहाँ कयार्दा के पास राजमाता नायिका देवी , बाल मूलराज द्वितीय की सेना से उसका युद्ध हुआ । डेढ़ शताब्दी पूर्व मह गजनवी द्वारा मिली अपमानजनक पराजय का बदला लेने के मूलराज द्वितीय ने मुस्लिम सेना का सामना किया
हसन निजामी ने लिखा है सुल्तान आबू पर्वत के पास घायल हुआ । सं . 1319 के सुंधा पहाड़ी अभिलेख के 36 वें श्लोक में जालोर के शासक कृतिपाल , नाडोल के शासक केल्हण , आबू के परमार शासक धारावर्ष ( धर्णीवरहा ) ने भी भाग लिया था और धारावर्ष ने मूलराज की सहायता करके अपने राज्य को मुस्लिम आक्रमण से बचाने का प्रयास किया था
मिन्हाजूस्सिराज के अनुसार “ गुजरात की राजमाता नायिका देवी के पास एक अत्यतं सुसज्जित शत्तिशाली सेना थी और बड़ी सख्या में हाथी थे इस युद्ध में मुहम्मद गौरी की पूर्ण पराजय हुई और यहाँ से बड़ी मुश्किल से जान बचाकर अपनी पराजित सेना के साथ भाग निकलने में सफल हो सका " यदि “ प्रबंध चिंतामणि " का कथन सही माना जाय तो कहा जा सकता है कि राजपूत सेना का नेतृत्व गुजराज के द्वितीय बाल मूलराज की माता नाइकी देवी ने किया था और उसी के नेतृत्व में राजपूतो की सेना ने मुस्लिम सेना को पूर्णतिय पराजित करके गजनवी के हाथो हुई पराजय का बदला चूका लिया
बाद में मोहम्मद गोरी ने गुजरात की तरफ कभी आंख उठाकर भी नहीं देखा वो एक अपनी पहली हार बड़ी हार का सामना करते हुए, मोहम्मद गौरी मुट्ठी भर अंगरक्षकों के साथ भाग गया। उसका अभिमान चकनाचूर हो गया, और उसने फिर कभी गुजरात को जीतने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, उसने अगले साल खैबर दर्रे के माध्यम से उत्तर भारत में प्रवेश करने वाले अधिक संवेदनशील पंजाब की ओर देखा।
भारत के इतिहास की सबसे महान योद्धाओं में से महिलाओं में से एक, राजमाता नायिका देवी की अदम्य साहस और अदम्य भावना झांसी की पौराणिक रानी लक्ष्मी बाई, मराठों की रानी ताराबाई और कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के बराबर हैं। फिर भी, इतिहास की किताबों में उसकी अविश्वसनीय कहानी के बारे में बहुत कम लिखा गया है।
राजमाता नायिकी देवी जैसी वीरता की मूर्ति यह साबित करती हैं की भारत में स्थायी रूप से इस्लामिक शासन कोई नहीं स्थापित कर पाया था ऐतिहासिक नक़्शे कासिम से लेकर औरंगजेब तक के शाशन काल तक का सब धोखा हैं अप्रमाणित हैं ( वामपंथी इतिहासकारों ने 1957 से इतिहास लिखना शुरू किया था इन मार्क्स के लाल बंदरो ने जहा जहा मुस्लिम बहुल इलाके का नक्षा मिला 1939 से लेकर 1950 तक का उसीको औरंगजेब एवं मुग़ल , अफ़ग़ान , तुर्क इत्यादि लूटेरो की राजधानी बना दिया और उनके द्वारा शाशित किये गए राज्य बना दिए )।
वामपंथ इतिहासकार ने इतिहास में मुगलों को भारत विजय का ताज पहना दिया हकीकत में राजपूत राजाओ से एवं दुर्गा स्वरुप रानी से पराजय होकर जिहादी लूटेरो को वापस अरब के रेगिस्तान में लौटना पड़ा ।
इतिहास में दंत कथाओं के इतिहास को ज्यादा बढ़ावा मिला है लेकिन सत्य इतिहास को बहुत कम..
" कयाद्रा विजय उत्सव "
मोहम्मद गौरी को पहली पराजय भारत में राजमाता नायिका देवी व बाल मुलराज जी के नेतृत्व में हुई थी!ऐसे गोरवशाली विजय उत्सव को *राजपूताना* में क्यों नहीं मनाते ?
जय हो राजमाता नायिका देवी की
जय सोमनाथ महादेव..
पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करके अपना कर्तव्य निभाय भारत का गौरवशाली इतिहास सबके समक्ष पहुंचाए
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